मंगलवार, 17 नवंबर 2009

नेकी का ढिंढोरा !!!


आज बस से कहीं जा रहा था तो ट्रैफिक में एक आटो पर नज़र पङी...जिस पर ये शब्द लिखे थे इस गाङी के चालक बलबीर भाटिया को सवारी का भूला हुआ बैग मिला।जिसमें कैश व ज्वैलरी-10,00000 (दस लाख) का था जिसको हमारे व पुलिस के सामने वापस किया गया। NDTV,IBN7,INDIA TV,DELHI AAJ TAK

पढ़ कर बहुत खुशी हुई कि आज भी अच्छाई ज़िन्दा है,पर....

तब से दिमाग में यही सवाल उठ रहा है कि इसे आटो पर पेंट से हाईलाईट करके लिखने कि आख़िर ज़रूरत क्या थी..???

अगर आपको समझ आए तो ज़रूर बताइयेगा...

क्या ये नेकी का ढिंढोरा पीटना है या और कुछ.....?

रविवार, 15 नवंबर 2009


दिल्ली सरकार ने बसों के किराये तो बढा दिये। लेकिन जर्जर हो चुके ऐसे कितने ही बस स्टैंडों की तरफ सरकार ध्यान देने की कोई ज़रूरत ही नहीं समझती।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

बाल दिवस...सिर्फ़ एक औपचारिकता

चिट्ठाजगत ठंड ने दस्तक दे दी है तो सुबह-सुबह कॉलेज पहुँच कर कैंटीन की ही याद आती है। आज चाय का ऑर्डर देकर बैठी ही थी तो मेरे एक दोस्त का मोबाईल पर मैसेज आया कि " हैप्पी चिल्ड्रन्स डे "...आज बाल दिवस है ? याद ही नहीं रहा। इस भाग-दौड ने तो हमसे हमारा बचपना ही छीन लिया। सोच ही रही थी कि छोटू चाय लेकर हाज़िर हो गया। छोटू...एक 8-10 साल का लडका...रोज़ कैंटीन में काम करते देखती हूँ उसे...पर आज जब वो चाय लेकर आया तो अचानक ही मन में सवाल आया...क्या इसे पता है कि आज बाल दिवस है ? बच्चों का दिन...यानि छोटू का दिन।
छोटू तो चाय देकर बाकी टेबलों के ऑर्डर पहुँचाने में लग गया...पर मैं अपने मन के रास्ते होते ह्ए अपनी सोच को उस सिग्नल पर ले गयी जहाँ मेरी बस रूकी थी। दो-तीन छोटे-छोटे बच्चे अपने "काम" में काफ़ी व्यस्त दिख रहे थे..."काम"...आने जाने वालो से पैसे की गुहार कर रहे थे, अपनी मजबूरियाँ बताना..."काम"। फिर वहीं मे मेरी सोच मुझे कुछ और दूर ले गयी, मेरे पडोसी के घर। आंटी अपनी ग्यारह साल की नौकरानी जिसे वो झारखण्ड से "खरीद" लायी थी, उसपर चिल्ला रही थी। शायद मार भी रही थी। लक्ष्मी नाम है उस लडकी का। अक्सर अपने घर की बालकनी से उसे घर का काम करते और पिटते हुए देखती हूँ...एक और मैसेज...ले आई मेरी सेच मुझे वापस...एक और दोस्त का...हैप्पी चिल्ड्रन्स डे...तभी छोटू आया और कप उठाकर ले गया।

(भारत में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगे 23 साल गुजर गए। इसके बावजूद सबसे ज्यादा बाल-मजदूर भारत में ही हैं। एक अनुमान के मुताबिक देशभर में 1 करोड़ 70 लाख बाल-मजदूर हैं। देश के 1 करोड़ 70 लाख बाल-मजदूरों में से सिर्फ 15 प्रतिशत को ही मजदूरी से मुक्ति मिल पायी है। भारत के ग्रामीण इलाकों में तीन साल से कम उम्र के 40 प्रतिशत बच्चों का वजन औसत से कम है, जबकि 45 फीसदी बच्चों का विकास सही ढंग से नहीं हो पाया है।
पूरे विश्व में हर दिन करीब
18 हजार बच्चे भूखे मर रहे हैं।
जबकि भारत में 42।5 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।)